वलसाड के कस्तूरबा अस्पताल में लापरवाही की हद! गलत इलाज देकर मरीज की जान खतरे में डाली

डॉक्टर की अज्ञानता और अस्पताल की लापरवाही से मरीज की हालत बिगड़ी, परिवार ने की सख्त कार्रवाई की मांग

वलसाड: सरकारी अस्पतालों में लापरवाही के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। वलसाड के आज़ाद चौक स्थित कस्तूरबा अस्पताल में मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ करने का एक और गंभीर मामला सामने आया है। डॉक्टरों की लापरवाही और गलत इलाज के कारण एक मरीज की जान खतरे में पड़ गई। डॉक्टरों ने मरीज की बीमारी को पहचानने में बुरी तरह असफल रहे, गलत इलाज दिया और अंत में मरीज को गंभीर स्थिति में छोड़कर घर भेज दिया। अब मरीज की पत्नी ने डॉक्टरों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है और डॉक्टर की डिग्री रद्द करने की मांग की है।

कैसे की गई घोर लापरवाही?

लताबेन भरतभाई रावल ने जिला स्वास्थ्य अधिकारी को दी गई शिकायत में बताया कि उनके पति भरतभाई रावल को 22 फरवरी 2025 को तेज पेट दर्द, उल्टी और बुखार होने पर कस्तूरबा अस्पताल में भर्ती कराया गया था। डॉ. विवेक चौरसिया और अस्पताल स्टाफ ने मरीज को तुरंत इलाज देने के बजाय उनकी गलत बीमारी बताकर फर्जी इलाज शुरू कर दिया।

24 फरवरी को मरीज की सोनोग्राफी करवाई गई, लेकिन डॉक्टर ने इसे सही से देखने की जहमत तक नहीं उठाई। उन्होंने बीमारी को पूरी तरह गलत बताते हुए कहा कि मरीज को फैटी लिवर और लीवर में सूजन है।

डॉक्टरों ने इस गलत निदान के आधार पर मरीज को गलत दवाइयां, इंजेक्शन और बोतलें चढ़ाईं, जिससे न सिर्फ बीमारी का सही इलाज नहीं हुआ, बल्कि मरीज की हालत और बिगड़ती गई।

डॉक्टर ने दी झूठी तसल्ली, मरीज को तड़पता छोड़ दिया

26 फरवरी तक मरीज को सही इलाज नहीं मिलने के बावजूद डॉक्टर ने उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया। जब मरीज ने शिकायत की कि दर्द और बुखार लगातार बढ़ रहा है, तब डॉ. विवेक चौरसिया ने केवल दवाएं लिखकर 3 मार्च को दोबारा दिखाने की सलाह दी।

परिवार को अस्पताल पर भरोसा था, लेकिन यह भरोसा डॉक्टर की लापरवाही और गैरजिम्मेदारी के कारण टूट गया। अस्पताल में भर्ती रहने और दवाओं पर ₹30,000 खर्च हो गए, लेकिन मरीज की तबीयत में कोई सुधार नहीं हुआ।

लोटस अस्पताल में खुली पोल, कस्तूरबा अस्पताल की बड़ी लापरवाही उजागर

जब 3 मार्च को मरीज की हालत और बिगड़ गई, तो लताबेन उन्हें वलसाड के लोटस अस्पताल लेकर गईं। वहां डॉ. कल्पेश जोशी ने तुरंत जांच करवाई और सोनोग्राफी के बाद चौंकाने वाला खुलासा हुआ।

डॉ. संजीव देसाई ने बताया कि मरीज को एपेंडिक्स में पस हो गया था और अगर तुरंत ऑपरेशन न किया जाता, तो संक्रमण पूरे शरीर में फैल सकता था, जिससे जान का खतरा था।

लोटस अस्पताल के डॉक्टरों ने तुरंत सर्जरी की, जिसमें मरीज के पेट से बड़ा पस निकाला गया। ऑपरेशन सफल होने के बाद मरीज की हालत में सुधार हुआ और 6 मार्च को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।

कस्तूरबा अस्पताल और डॉक्टरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग

लताबेन रावल ने डॉ. विवेक चौरसिया और कस्तूरबा अस्पताल के गैर-जिम्मेदार डॉक्टरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है। उनका कहना है कि—
✔ डॉक्टर की अयोग्यता के कारण सही बीमारी पकड़ में नहीं आई।
✔ गलत दवाइयां देकर मरीज की हालत खराब कर दी गई।
✔ मरीज को सही इलाज देने की बजाय गलत रिपोर्ट के आधार पर इलाज किया गया।
✔ मरीज की जान पर बन आई, फिर भी डॉक्टरों ने गंभीरता नहीं दिखाई।
✔ ₹30,000 खर्च करवाकर गलत इलाज दिया गया।

क्या अब भी अस्पताल प्रशासन सोता रहेगा?

क्या जिला स्वास्थ्य विभाग इस मामले में डॉक्टर की डिग्री रद्द करेगा?

क्या इस लापरवाही के लिए डॉक्टर और अस्पताल पर केस दर्ज होगा?

कस्तूरबा अस्पताल में और कितने मरीजों के साथ इस तरह की लापरवाही हो चुकी है?

Dare To Share यह मांग करता है कि इस गंभीर लापरवाही के खिलाफ तुरंत जांच हो और दोषी डॉक्टर पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाए। अगर समय पर सही इलाज न मिलता, तो यह मामला मरीज की मौत में बदल सकता था। सरकारी अस्पतालों में ऐसी लापरवाहियां कब तक चलती रहेंगी?

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