भारत देश में हजारों साल से पुरानी बावड़ियों का मिलना आम बात है
पानी को इकट्ठा कर रखने वाली ये बावड़ियां आज हमारी ऐतिहासिक धरोहर है। आज हम एक ऐसी ही एक ऐतिहासिक धरोहर के आप सब को दर्शन करवाते है।
राजस्थान के सिरोही गांव “वासा” की ऐतिहासिक बावड़ी
वासा गांव यह स्वरूपगंज से 9 किमी और आबू रोड से 25 किमी दूर है पूर्व काल में इसे वसंतपुर या वसंतगढ़ के नाम से भी जाना जाता है । वासा में एक मंदिर लक्ष्मीनारायण मंदिर भी है जिसकी आधारशिला मीराबाई ने रखी थी ये बताया जाता है।
वासा गांव अपने सूर्य मंदिर , जाबेश्वर महादेव मंदिर, वाव ( वासा की बावड़ी ), जमदगनी ऋषि आश्रम और कई अन्य पुराने मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। सूर्य मंदिर को सूर्य नारायण मंदिर भी कहा जाता है और इसे बारहवीं शताब्दी में बनाया गया था
वासा गांव की बावड़ी भी काफी पुरानी है, एक दशक तक ये बावड़ी गांव के पानी का मुख्य केंद रही है, बड़े बुजर्ग वहा से ही पीने का पानी भरते थे, सालो साल वासा गांव के निवासियों के पानी की पूर्ति करती रही, हाल ये बावड़ी पूरी तरह बंद पड़ी है ऐतिहासिक होने के नाते गांव का एक देखने वाला स्थान है।
ये बावड़ी का निर्माण लाखी बंजारा या उसकी बहन के द्वारा किया गया था, पूरी बावड़ी बिना किसी सिरमेंट के विशाल पत्थरो से बनी है,
ये बावड़ी में एक खास त्यौहार मनाया जाता है, खेतलाजी की बैर, खेतलाजी की पूजा की जाती है, गांव के हरेक घर से एक बार इस बावड़ी में आके खेतलाजी की पूजा करनी जरूरी होती है, गांव की हरेक बेटी को उस गाम में एक बार आना पड़ता है और बैर अर्थात खेतलाजी की पूजा करनी पड़ती है। आज की कहानी हम यहां समाप्त करते है
ऐसे ही ऐतिहासिक धरोहर जाबेश्वर महादेव मंदिर की कहानी जल्द आप के सामने लेके आयेंगे।
तब तक हमारा आप को सब को घणी खम्मा, मनोज रमेश रावल वासा