वापी में 43 करोड़ की लागत से बना बलिठा ओवरब्रिज जनता की सुविधा के लिए बना या सिर्फ नेताओं के फोटोशूट के लिए? उद्घाटन के 24 घंटे में ही इसे बंद कर दिया गया, फिर बिना किसी आधिकारिक सूचना के अचानक खोल भी दिया गया!

“उद्घाटन का तमाशा, ट्रैफिक की परेशानी का लॉलीपॉप!”
नेताओं ने ब्रिज का उद्घाटन किया, बड़े-बड़े दावे किए, अखबारों में फोटो छपी, लेकिन जनता को सिर्फ धोखा मिला! अगर ब्रिज सही था, तो 24 घंटे में बंद क्यों किया गया? और अगर गलत था, तो अब अचानक खोलने का क्या मतलब?”
“ब्रिज या पॉलिटिकल शोपीस?”
- उद्घाटन के अगले ही दिन ब्रिज पर ताला क्यों लगा?
- सरकार और प्रशासन ने इस पर कोई सफाई क्यों नहीं दी?
- क्या यह जनता के पैसे पर कोई नया खेल था?
“बंद हुआ तो कारण नहीं, खुला तो जवाब नहीं!”
ब्रिज कई दिनों तक बंद रहा, फिर बिना कोई प्रेस नोट जारी किए इसे अचानक खोल दिया गया। जनता के टैक्स के करोड़ों रुपये खर्च हुए, लेकिन जवाबदेही शून्य!



“जनता के पैसों पर ‘लॉलीपॉप राजनीति’?”
अब ब्रिज चालू हो गया है, लोग राहत महसूस कर रहे हैं, लेकिन सरकार और प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल जस के तस बने हुए हैं। क्या यह जनता को गुमराह करने का नया तरीका है? या फिर चुनावी ड्रामा था, जिसमें नेताओं ने अपना फायदा देख लिया और जनता को फिर ‘लॉलीपॉप’ पकड़ा दिया?

“नेताओं की ब्रांडिंग, जनता की बंदी!”
सरकार ने वाहवाही लूट ली, प्रशासन ने अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश की और जनता को सिर्फ इंतजार और ट्रैफिक जाम मिला। क्या इस ‘लॉलीपॉप ब्रिज’ पर कोई कार्रवाई होगी, या फिर अगला चुनाव आने तक जनता को फिर किसी नए ब्रिज का ‘लॉलीपॉप’ थमा दिया जाएगा?”


