भगवान के दरबार में भी VIP कल्चर: क्या पैसे से मिलेंगे मोक्ष के रास्ते?

आजकल मंदिरों में VIP दर्शन की व्यवस्था एक बड़ी चर्चा का विषय बन गई है। तिरुपति बालाजी, सिद्धिविनायक, वैष्णो देवी, और अन्य प्रमुख मंदिरों में पैसे देकर तुरंत दर्शन की सुविधा ने आम भक्तों के दिल में कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

तिरुपति बालाजी मंदिर:
तिरुपति बालाजी मंदिर में VIP दर्शन के लिए भक्तों को ₹300 से ₹5000 तक चुकाने पड़ते हैं। वहीं, आम भक्त कई घंटे कतार में लगने के बाद भगवान के दर्शन कर पाते हैं। यह व्यवस्था धार्मिक समानता के सिद्धांत पर चोट करती है।

वैष्णो देवी मंदिर:
वैष्णो देवी में भी VIP पास खरीदने वालों को प्राथमिकता दी जाती है। उन्हें लंबी कतारों से बचते हुए सीधे दर्शन का मौका मिलता है। यह सवाल उठता है कि क्या भक्ति और श्रद्धा का भी मूल्य तय किया जा सकता है?

सिद्धिविनायक मंदिर, मुंबई:
यहां VIP दर्शन के लिए अलग व्यवस्था है। कई बार VIP दर्शन के दौरान आम भक्तों को काफी देर तक इंतजार करना पड़ता है। इससे श्रद्धालुओं में रोष बढ़ रहा है।

क्या कहते हैं भक्त?

  1. दिलीप शर्मा, वापी: “मंदिरों में VIP दर्शन भगवान की न्यायप्रियता पर सवाल खड़ा करता है। भगवान सभी के लिए समान हैं, तो यह भेदभाव क्यों?”
  2. सुनीता राव, दमन: “अगर मैंने पैसे नहीं दिए, तो क्या मेरी भक्ति कम हो जाती है? VIP दर्शन ने मंदिरों को व्यवसाय बना दिया है।”
  3. विकास गुप्ता, दमन: “यह व्यवस्था विकलांगों और वृद्धजनों के लिए ठीक है, लेकिन अमीरों को पैसे के आधार पर प्राथमिकता देना गलत है।”

धार्मिक संस्थानों की जिम्मेदारी:
धार्मिक स्थलों को यह समझना होगा कि उनकी भूमिका समाज में समानता और न्याय का उदाहरण पेश करने की है। VIP दर्शन जैसी व्यवस्थाएं इन सिद्धांतों के विपरीत जाती हैं।

“डेयर टू शेयर” की रिपोर्ट:
हमारा मानना है कि भगवान का दरबार सभी के लिए समान होना चाहिए। VIP दर्शन जैसी व्यवस्थाओं को समाप्त कर एक समान दर्शन की व्यवस्था लागू की जानी चाहिए। विकलांगों और वृद्धजनों के लिए विशेष सुविधाएं होनी चाहिए, लेकिन पैसे के आधार पर प्राथमिकता देना पूरी तरह अनुचित है।

आइए, मिलकर आवाज उठाएं और मंदिरों को पवित्र और भेदभाव रहित बनाएं।

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