वापी में 22 दिसंबर 2024 को रावल ब्राह्मण समाज का तीसरा महा स्नेहमिलन सम्मेलन होने जा रहा है, जो न केवल एक सांस्कृतिक समागम है, बल्कि समाज की एकजुटता, समृद्धि और आगे बढ़ने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है। इस सम्मेलन का महत्व इस तथ्य में निहित है कि यह हर साल समाज के विभिन्न सदस्यांे को एक साथ लाता है, उन्हें एक दूसरे के साथ जुड़ने और अपने समाज को आगे बढ़ाने के नए तरीके तलाशने का मौका प्रदान करता है।
महिलाओं की मजबूत भूमिका
रावल ब्राह्मण समाज में महिलाओं की भूमिका हमेशा से ही महत्वपूर्ण रही है। गत सम्मेलन में जहां महिलाओं ने नाश्ते और अल्पाहार की व्यवस्था की थी, वहीं इस बार वे सम्मेलन के मुख्य आकर्षण “महा भोजन” की व्यवस्था का नेतृत्व करेंगी। समाज में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी एक महत्वपूर्ण बदलाव की ओर इशारा करती है, जहां वे केवल पारंपरिक कार्यों में ही नहीं, बल्कि समाज के विकास के महत्वपूर्ण निर्णयों में भी अपनी भूमिका निभा रही हैं।
व्यवसायिक विकास की दिशा
रावल ब्राह्मण समाज के सदस्य अपने समुदाय के बीच व्यापार और रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए एकजुट हो रहे हैं। समाज के फाउंडर और कार्यकारी सदस्य न केवल सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं पर ध्यान दे रहे हैं, बल्कि वे यह भी सुनिश्चित कर रहे हैं कि रावल ब्राह्मणों का व्यवसायिक क्षेत्र भी मज़बूत हो। हर सदस्य के घर जाकर उनके व्यवसाय को बढ़ावा देने के उपाय तलाशे जा रहे हैं, ताकि समाज का आर्थिक विकास भी हो।
रावल ब्राह्मण समाज और इतिहास की झलक
रावल ब्राह्मण राजस्थान की एक महत्वपूर्ण ब्राह्मण जाति है, जिसका इतिहास समृद्ध और वीरता से भरा हुआ है। इस समाज की कुल जनसंख्या लगभग 45 हजार के आसपास मानी जाती है। रावल ब्राह्मण जाति का नाम “रावल जी” एक उच्च पदवी से जुड़ा हुआ है, जिसे सिरोही के महाराजा ने इन ब्राह्मणों को दिया था। “रावल” की पदवी की शुरुआत बापा रावल और रावल रतन सिंह जैसे वीरों से हुई थी। यह पदवी एक सम्मान थी, जो इन ब्राह्मणों को उनकी साहसिकता और वीरता के कारण दी गई थी।
इतिहास में रावल ब्राह्मणों का उल्लेख उनके शस्त्र और शास्त्र दोनों के ज्ञान के कारण मिलता है। वे पाली क्षेत्र में निवास करते थे और शस्त्रों के साथ-साथ शास्त्रों का भी अध्ययन अध्यापन करते ओर करवाते थे। पालीवाल ब्राह्मणों के इष्ट देव महादेव थे, और उनकी शिक्षा का केंद्र गुरुकुल थे। ओर अपने गुरुकुल में शास्त्र के साथ शस्त्र का भी ज्ञान देते थे, पालीवाल ब्राह्मणों ने युद्ध की कला में भी महारत हासिल की हुई थी।
कहा जाता है कि 1348 ईस्वी में दिल्ली के शासक जलालुद्दीन खिलजी ने पाली पर आक्रमण किया। इस दौरान पाली के शासक ने ब्राह्मणों से सहायता मांगी। पाली और उसके धर्म की रक्षा के लिए इन ब्राह्मणों ने अपने शस्त्रों का प्रयोग किया। लड़ाई में उन्होंने अपने धर्म और नगर की रक्षा के लिए कड़ी संघर्ष किया।
जब शत्रुओं को लगा कि ये ब्राह्मण कौम बड़ी लड़ाकू कौम है तो शत्रुओं ने उनके पानी के स्रोत को अपवित्र कर दिया और पीने के पानी में गोवंश डाल दिया, तो भी इन ब्राह्मणों ने हार नहीं मानी। युद्ध के दौरान उन्हें कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा, लेकिन वे लगातार संघर्ष करते रहे।
इस युद्ध में ब्राह्मणों के कई वीर शहीद हो गए। कहा जाता है कि शहीद हुए ब्राह्मणों से 9 मण (लगभग 360 किलो) जनेऊ और 84 मण चूड़ों का वजन निकला। ये चूड़े हाथी के दांतों जैसे थे। इन शहीदों की याद में पाली में धौला चौतरा का चबूतरा बना, जो आज भी उन पालीवाल ब्राह्मणों के वीरता की गवाह देता है।
युद्ध हारने के बाद बचे हुए ब्राह्मणों ने पाली छोड़ने का निर्णय लिया। रक्षाबंधन के दिन उन्होंने पाली छोड़ने का संकल्प लिया और भविष्य में पाली में पानी नहीं पीने का निर्णय लिया। बाद में वे सिरोही, जैसलमेर और गुजरात की ओर प्रवासित हुए। सिरोही में कुछ ब्राह्मणों ने विश्राम किया और सिरोही के शासक को प्रभावित किया। शासक ने उन्हें “रावल जी” की पदवी दी और 56 गांवों की जागीरी दी। इस प्रकार सिरोही में रावल ब्राह्मणों की एक नई पहचान बनी।
समय के साथ, रावल ब्राह्मण समाज की कहानियां सिरोही में फैलने लगीं। वे अब केवल एक लड़ाकू जाति के रूप में नहीं, बल्कि पूजा करने वाले, हर 6 महीने में स्वर्ग में जाने वाले, मांडवा के जागीरदार और नागा मांडवीय के रूप में भी पहचाने जाने लगे। उनकी वीरता और बलिदान की कहानियां सिरोही के इतिहास का हिस्सा बन गईं। ये सभी कहानियां ओर इतिहास को समेट कर आने वाली डायरेक्ट्री में लिखा जाने वाला है।
इस प्रकार, रावल ब्राह्मण समाज का इतिहास केवल एक युद्ध के इतिहास के रूप में नहीं, बल्कि धर्म, संस्कृति और समर्पण की कहानी के रूप में भी महत्वपूर्ण बन गया। यह समाज आज भी सिरोही और आसपास के क्षेत्रों में अपने गौरवपूर्ण इतिहास के प्रतीक के रूप में जाना जाता है।
निष्कर्ष
रावल ब्राह्मण समाज का तीसरा महा स्नेहमिलन सम्मेलन न केवल एक सांस्कृतिक कार्यक्रम है, बल्कि यह समाज के गौरव, एकता और इतिहास को सम्मानित करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। इस सम्मेलन में रावल ब्राह्मणों की वीरता की गाथाओं को पुनः जीवित किया जाएगा और समाज की नई पीढ़ी को उनके संघर्षों और बलिदानों से प्रेरणा मिलेगी। 22 दिसंबर 2024 को होने वाला यह सम्मेलन रावल ब्राह्मण समाज के सभी सदस्यांे के लिए एक ऐतिहासिक और अविस्मरणीय क्षण साबित होगा।
हम आपको इस महा स्नेहमिलन सम्मेलन में शामिल होने का आमंत्रण देते हैं और उम्मीद करते हैं कि यह आयोजन समाज की समृद्धि, एकता और विकास की दिशा में एक अहम कदम साबित होगा।